लाइब्रेरी में जोड़ें

मनहरण घनाक्षरी




मनहरण घनाक्षरी


सबक सदैव सीख,चल घूम -फिर नित।

कण-कण महकत,देत प्रिय ज्ञान है।


कभी न संकोच कर, लेते-देते रह नित।

लेने-देने से ही सदा, बढ़ता सम्मान है।


देना सीखो पाओ प्रिय, अच्छा-अच्छा गढ़ नित।

अति सच्चे भावों से ही, बनता सुजान है।


 रख मधु भाव शिव,चल हित-न्याय पथ।

कपटविहीन जन,जान-मेहमान है।


कर न गलत काम, बन सब का सहाय।

अपना सुधार कर, यह बड़ ध्यान है।


यही नित्य काम कर, दर्प को कुचल चल।

दुश्मन बन है खड़ा, गन्दा अभिमान है।


सीखो-सीखो जगती से, पढ़ो-पढ़ो धरती से।

गढ़-गढ़ अपने को, यही आत्मज्ञान है।





   7
1 Comments

Renu

25-Jan-2023 03:54 PM

👍👍🌺

Reply