मनहरण घनाक्षरी
मनहरण घनाक्षरी
सबक सदैव सीख,चल घूम -फिर नित।
कण-कण महकत,देत प्रिय ज्ञान है।
कभी न संकोच कर, लेते-देते रह नित।
लेने-देने से ही सदा, बढ़ता सम्मान है।
देना सीखो पाओ प्रिय, अच्छा-अच्छा गढ़ नित।
अति सच्चे भावों से ही, बनता सुजान है।
रख मधु भाव शिव,चल हित-न्याय पथ।
कपटविहीन जन,जान-मेहमान है।
कर न गलत काम, बन सब का सहाय।
अपना सुधार कर, यह बड़ ध्यान है।
यही नित्य काम कर, दर्प को कुचल चल।
दुश्मन बन है खड़ा, गन्दा अभिमान है।
सीखो-सीखो जगती से, पढ़ो-पढ़ो धरती से।
गढ़-गढ़ अपने को, यही आत्मज्ञान है।
Renu
25-Jan-2023 03:54 PM
👍👍🌺
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